समझौता या नैतिकता
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मत्ती 5:10-12 “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। 11“धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, और सताएँ और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें। 12तब आनन्दित और मगन होना, क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है। इसलिये कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहले थे इसी रीति से सताया था।
इन दिनों सच्चाई से दूर जाने का, परमेश्वर जो हमें सही बात बताता है उसे त्यागने का, और उसे किसी घिसी पिटी अप्रासंगिक बड़बड़ाहट के रूप में देखने का दबाव बहुत ज्यादा है। शायद आपने भी ऐसा महसूस किया होगा।
मैं आपके बारे में नहीं जानता, लेकिन मैं अक्सर अपने आप को, आज की विचारधारा से अलग पाता हूँ। सिर्फ एक या दो मुद्दों पर नहीं, बल्कि कई मुद्दों पर। प्रवाह के खिलाफ लगातार तैरना कठिन काम है और ईमानदारी से कहूं तो कई बार मैं खुद से पूछता हूं, कि क्या इस का कोई फायदा है? कई बार ऐसा होता है जब मेरा हार मान लेने का मन करता है।
शायद आप को भी कभी ऐसा लगता हो।
मुझे लगता है कि इसका कारण यह है कि यदि आप यीशु में विश्वास करते हैं, यदि आप उसे उसके वचन के अनुसार चलते हैं, यदि आपने अपने जीवन में वह मसीह को सबसे ऊपर रखने का निर्णय लिया है, तो दुनिया इसके लिए आपसे घृणा करेगी। इससे दुख होता है, क्योंकि आप वही करने की कोशिश कर रहे हैं जो सही है। आप केवल एक ईश्वरीय और शांतिपूर्ण जीवन जीने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन हमारे ऊपर संसार के अनुरूप चलने का दबाव बहुत ज्यादा है!
मत्ती 5:10-12 “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
11“धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, और सताएँ और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें। 12तब आनन्दित और मगन होना, क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा फल है। इसलिये कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहले थे इसी रीति से सताया था।
समझौते का अर्थ है कि हम भी वही करें जो हर कोई कर रहा है, चाहे फिर सही कुछ भी हो। दूसरी ओर, नैतिकता का अर्थ है कि हम वही करें जो सही है, भले ही बाकी लोग कुछ भी कर रहे हों।
इसलिए वही चुनें जो सही है, क्योंकि स्वर्ग में इसका फल बड़ा है।
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज …आपके लिए…।