अपने उद्देश्यों का जायजा लें
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फिलिप्पियों 2:3-4 विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। 'हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन् दूसरों के हित की भी चिन्ता करे। ' 4प्रत्येक व्यक्ति अपने हित का ही नहीं, बल्कि दूसरों के हित का भी ध्यान रखे।
तो पिछली बार जब आपने कुछ ऐसा कहा या किया जो, सोचने पर आपको लगा कि, सही बात नहीं थी, तो क्या आपने खुद से पूछा, क्यों? ज़्यादातर, हम ऐसा नहीं करते। हम बस आगे बढ़ जाते हैं और फिर से वही गलती करते हैं। आखिर हम अपनी गलतियों से कब सीखेंगे?
हम सभी के पास अपने अपने तरीके हैं, विभिन्न आदतें हैं जिन्हें हम बार-बार दोहराते हैं। मान लीजिए कि कोई ऐसा व्यक्ति है जिसे आप पसंद नहीं करते हैं, इसलिए जब फ़ोन बजता है और उसका नाम स्क्रीन पर आता है तो आप उस कॉल का जवाब नहीं देते। क्यों?
खैर, आप तर्क दे सकते हैं कि आपको अपने जीवन में उनके नाटक की ज़रूरत नहीं है। आपको उनका बेकार का रोना-धोना, इस की उस की बुराई, या शायद फिर से आपकी आलोचना सुनने की ज़रूरत नहीं है। ठीक है, ठीक है।
लेकिन अब प्रश्न यह उठता है कि, उस निर्णय को लेने के पीछे आपका उद्देश्य क्या है? क्या यह खुद की देखभाल करना है, या उस मुश्किल व्यक्ति की देखभाल करना है? क्या यह आपकी शांति को बनाए रखना है, या उनके जीवन में प्रोत्साहन के कुछ जरूरी शब्द बोलना है, भले ही वे आपको कैसा भी महसूस कराते हों?
अपने इरादों पर सवाल उठाना हमारे लिए एक असहज भावना हो सकती है, लेकिन हमें उन पर सवाल उठाना चाहिए। इस बारे में लिखते हुए, प्रेरित पौलुस यह कहते हैं:
फिलिप्पियों 2:3 विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो। ‘हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन् दूसरों के हित की भी चिन्ता करे। ‘ 4प्रत्येक व्यक्ति अपने हित का ही नहीं, बल्कि दूसरों के हित का भी ध्यान रखे। 5तुममें वही स्वभाव हो जो मसीह यीशु में था,
यीशु, जो आप और मेरे जैसे लोगों के लिए क्रूस पर बलिदान हो गए, भले ही हम कितने भी मुश्किल लोग क्यों न हों। जब बात दूसरों के साथ व्यवहार करने की आती है, तो हमेशा अपने इरादों पर सवाल उठाने के लिए तैयार रहें।
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज … आपके लिए …