जब मैं सोचता हूँ
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भजन संहिता 119:59,60 मैं ने अपनी चालचलन को सोचा, और तेरी चितौनियों का मार्ग लिया। 60 मैं ने तेरी आज्ञाओं के मानने में विलम्ब नहीं, फुर्ती की है।
तो, आज आपके लिए एक प्रश्न: आप कितनी बार सोचते हैं कि आप अपना जीवन कैसे जी रहे हैं? आप कितनी बार अपने जीवन में विभिन्न स्थितियों, विभिन्न उत्तेजनाओं, अच्छे और बुरे, पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं, इस पर विचार करते हैं?
यह बड़े प्रश्न हैं, क्योंकि यदि आप हर दिन बस उठते हैं, और वही करते है जो रोज करते हैं – उसी तरह, तो कुछ भी कभी भी बदलने वाला नहीं है।
अगर हम कल्पना करें कि चीजों को बेहतर बनाने के लिए, बाहर के लोगों को बदलना होगा, हमारी परिस्थितियों को बदलना होगा – तो हम लंबे समय तक प्रतीक्षा करेंगे, क्योंकि वे कभी नहीं बदल सकती । तो जवाब क्या है?
भजनसंहिता 119:59,60 जब मैं अपने चाल चलन पर ध्यान करता हूं, तब अपने पांव तेरी चितौनियों की ओर फिराता हूं; मैं तेरी आज्ञाओं के मानने में फुर्ती करता और देर नहीं करता।
तो, वापस मेरे प्रारंभिक प्रश्न पर आयें । आप अपने तरीकों पर कितनी बार सोचते हैं? क्योंकि मैं आपको बता दूं, हर बार जब मैं बाइबल खोलता हूं, हर बार जब मैं परमेश्वर के वचन को खोलता हूं, वह मुझे मेरे तरीकों पर सोचने का कारण बनता है। वह अपने प्रकाश, अपनी महिमा, अपनी शक्ति, अपने प्रेम, अपने आनंद, अपनी शांति को मेरी आत्मा की अँधेरी परतों में चमकाता है।
और उसका प्रभाव, वह भीतर मे एक तड़प पैदा करता है कि मैं उसका आदर करूँ, उसकी आज्ञा मानूँ, अपने पैरों को उसकी गवाहियों की ओर घुमाऊँ ताकि मैं बोल सकूँ।
बाइबल पढ़ने का वह दैनिक कार्य, परमेश्वर को मुझसे बात करते सुनना, और फिर उसके वचन के प्रकाश में मेरे तरीकों पर विचार करना, मुझे उसकी आज्ञाओं को मानने में देर नहीं करने के लिए प्रेरित करता है।
यह काम करने के लिए है। इस प्रकार परमेश्वर हमें बदलता है। इसी तरह वह हमारे जीवन को बदलता है। इसी तरह चीजें बेहतर होती हैं – चाहे वे दूसरे लोग हमारी परिस्थितियाँ बदलें या न बदलें।
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज आपके लिए… ।