परमेश्वर का राज्य ऐसा है…
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मत्ती 13:31,32 उस ने उन्हें एक और दृष्टान्त दिया; कि स्वर्ग का राज्य राई के एक दाने के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने लेकर अपने खेत में बो दिया। 32 वह सब बीजों से छोटा तो है पर जब बढ़ जाता है तब सब साग पात से बड़ा होता है; और ऐसा पेड़ हो जाता है, कि आकाश के पक्षी आकर उस की डालियों पर बसेरा करते हैं॥
यह कुछ ऐसा है जिससे कई लोग संघर्ष करते हैं: आप अपने जीवन में किसी प्रकार का विश्वास, कुछ आध्यात्मिक ठहराव चाहते हैं… और फिर भी, जो कुछ भी आप कर रहे हैं उसके संदर्भ में, वह ठहराव इतना छोटा, इतना महत्वहीन लगता है। किसी शोर में डूबा हुआ लगता है।
क्या आपने कभी ऐसा महसूस किया है? मैंने किया है, क्योंकि जीवन जीने के लिए काफी मेहनत की जरूरत होती है। जीवन जीने के लिए इतनी बातों का ध्यान रखना पड़ता है, कि उस आध्यात्मिक ठहराव के संपर्क में आना लगभग असंभव लगता है। यीशु यह जानता था, इसीलिए उसने कहा :
मत्ती 13:31,32 उस ने उन्हें एक और दृष्टान्त दिया; कि स्वर्ग का राज्य राई के एक दाने के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने लेकर अपने खेत में बो दिया।
32 वह सब बीजों से छोटा तो है पर जब बढ़ जाता है तब सब साग पात से बड़ा होता है; और ऐसा पेड़ हो जाता है, कि आकाश के पक्षी आकर उस की डालियों पर बसेरा करते हैं॥
ध्यान दें कि सुनने वाले लोगों ने “राज्य” की इस अवधारणा की व्याख्या एक राजा के पूर्ण शासन और अधिकार के रूप में की। बीते समय में, इज़राइल में राजा राज्य करते थे, लेकिन उस समय, रोम में सीज़र का क्रूर शासन था। तो फिर… यीशु क्या कह रहे हैं?
कि जब आप सरसों के बीज जैसा छोटा सा विश्वास अपने हृदय में बोते हैं (उस समय यह सबसे छोटा बीज मन जाता था) तो वह तेजी से एक बड़े पेड़ के रूप में बढ़ेगा (जिस प्रकार सरसों के पेड़ बढ़ते हैं)। यह आपके जीवन की सबसे प्रमुख वास्तविकता बन जाएगी। वास्तव में इतना बड़ा पेड़ कि अन्य लोग भी आकर आपके विश्वास पर विश्राम करेंगे, जैसे पक्षी उस पेड़ पर विश्राम करते हैं।
तो अगर आपके जीवन में शोर-शराबे के बीच, आपके पास विश्वास का एक दाना है… तो सावधान हो जाइए। क्योंकि यीशु के अनुसार, यह पर्याप्त से अधिक है।
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज …आपके लिए…