प्रलोभन का समय
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मरकुस 1:12,13 तब आत्मा ने तुरन्त उस को जंगल की ओर भेजा। 13 और जंगल में चालीस दिन तक शैतान ने उस की परीक्षा की; और वह वन पशुओं के साथ रहा; और स्वर्गदूत उस की सेवा करते रहे॥
जब भी हम किसी दबाव में होते हैं – चाहे वह शारीरिक हो, भावनात्मक हो या आध्यात्मिक – क्या आपने इस पर गौर किया है, कि उस समय प्रलोभन आप पर बहुत तेज़ी से आता है। ऐसा लगता है जैसे कोई जानता है कि आप संघर्ष कर रहे हैं, इसलिए जब आप नीचे गिरे होते हैं तो वे आपको ठोकर मारने का मौका नहीं छोड़ते।
प्रलोभन एक संवेदनशील विषय है। हम इसके बारे में बात करना पसंद नहीं करते, क्योंकि हम डरते हैं कि लोग क्या सोचेंगे। ऐसा क्यों है? निस्संदेह इसलिए क्योंकि हम इस गलत धारणा के तहत काम करते हैं कि हम ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो प्रलोभन में हैं।
लेकिन यह बिल्कुल सच नहीं है। प्रलोभन हम सभी को प्रभावित करता है, खासकर तब जब हम मुश्किल में होते हैं; खासकर तब जब आप ऐसे व्यक्ति हैं जो पूरे दिल से ईश्वर का सम्मान करना चाहता है। कोई भी इससे अछूता नहीं है। यीशु भी नहीं थे।
मरकुस 1:12,13 तब आत्मा ने तुरन्त उस को जंगल की ओर भेजा।
13 और जंगल में चालीस दिन तक शैतान ने उस की परीक्षा की; और वह वन पशुओं के साथ रहा; और स्वर्गदूत उस की सेवा करते रहे॥
यीशु ने खुद को जिस शारीरिक परिस्थिति में पाया, वह भयावह थी। सचमुच परमेश्वर की आत्मा ने उन्हें जंगली जानवरों के बीच रेगिस्तान में रखा, जहाँ वे चालीस दिन और चालीस रात भूखे रहे। वे कमज़ोर, दुर्बल, हर तरह से परेशान थे … और तब शैतान उन्हें लुभाने आया।
क्या यह द्रश्य जाना-पहचाना लगता है? और फिर भी उस भयानक जगह में, परमेश्वर उनके साथ थे। वहीं, उन कठिन परिस्थितियों में, हालाँकि निस्संदेह वे बहुत अकेले महसूस कर रहे थे, उनके पिता उनके साथ थे। और फिर, बिल्कुल सही समय पर, स्वर्गदूत आए और उनकी मदद की।
नहीं, आप अकेले नहीं हैं। बिल्कुल नहीं, आप हरगिज़ अकेले नहीं हैं।
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज … आपके लिए … ।