मामले की सच्चाई
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मलाकी 3:13-17 13 यहोवा यह कहता है, तुम ने मेरे विरुद्ध ढिठाई की बातें कही हैं। परन्तु तुम पूछते हो, हम ने तेरे विरुद्ध में क्या कहा है? 14 तुम ने कहा है कि परमेश्वर की सेवा करनी व्यर्थ है। हम ने जो उसके बताए हुए कामों को पूरा किया और सेनाओं के यहोवा के डर के मारे शोक का पहिरावा पहिने हुए चले हैं, इस से क्या लाभ हुआ? 15 अब से हम अभिमानी लोगों को धन्य कहते हैं; क्योंकि दुराचारी तो सफल बन गए हैं, वरन वे परमेश्वर की परीक्षा करने पर भी बच गए हैं॥ 16 तब यहोवा का भय मानने वालों ने आपस में बातें की, और यहोवा ध्यान धर कर उनकी सुनता था; और जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्मान करते थे, उनके स्मरण के निमित्त उसके साम्हने एक पुस्तक लिखी जाती थी। 17 सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि जो दिन मैं ने ठहराया है, उस दिन वे लोग मेरे वरन मेरे निज भाग ठहरेंगे, और मैं उन से ऐसी कोमलता करूंगा जैसी कोई अपने सेवा करने वाले पुत्र से करे।
मुझे आज आपसे पूछने की अनुमति दें, क्या आप यीशु में विश्वास करते हैं? यदि ऐसा है, तो आपने चाहे कुछ भी किया हो, आपने कितना भी बुरा व्यवहार किया हो, आप परमेश्वर की संतानों में से एक हैं। आपके लिए उसकी ओर फिरने के लिए उसका द्वार खुला रहता है।
मैं इतना साहसी और निरपेक्ष बयान कैसे दे सकता हूं? क्योंकि आप इसे बार-बार परमेश्वर के वचन में देखते हैं। लोग बुरा व्यवहार करते हैं और हाँ, उन्हें आमतौर पर उस व्यवहार के परिणामों को भुगतना पड़ता है, लेकिन जब वे वापस लौटते हैं तो परमेश्वर उन्हें माफ करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
एक समय था जब इस्राएल के लोग बुरा व्यवहार कर रहे थे। यहां बताया गया है कि परमेश्वर ने इसे कैसे सारांशित किया?
मलाकी 3:13-17 13 यहोवा यह कहता है, तुम ने मेरे विरुद्ध ढिठाई की बातें कही हैं। परन्तु तुम पूछते हो, हम ने तेरे विरुद्ध में क्या कहा है? 14 तुम ने कहा है कि परमेश्वर की सेवा करनी व्यर्थ है। हम ने जो उसके बताए हुए कामों को पूरा किया और सेनाओं के यहोवा के डर के मारे शोक का पहिरावा पहिने हुए चले हैं, इस से क्या लाभ हुआ? 15 अब से हम अभिमानी लोगों को धन्य कहते हैं; क्योंकि दुराचारी तो सफल बन गए हैं, वरन वे परमेश्वर की परीक्षा करने पर भी बच गए हैं॥ 16 तब यहोवा का भय मानने वालों ने आपस में बातें की, और यहोवा ध्यान धर कर उनकी सुनता था; और जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्मान करते थे, उनके स्मरण के निमित्त उसके साम्हने एक पुस्तक लिखी जाती थी। 17 सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि जो दिन मैं ने ठहराया है, उस दिन वे लोग मेरे वरन मेरे निज भाग ठहरेंगे, और मैं उन से ऐसी कोमलता करूंगा जैसी कोई अपने सेवा करने वाले पुत्र से करे।”
क्या आप ने देखा ? उन्होंने बुरा व्यवहार किया। लेकिन जब उन्होंने इस पर बात की तो परमेश्वर ने सुन लिया। उन्हें केवल एक बार फिर उसका सम्मान करना था। और बस इतना ही आपको और मुझे भी करना है। उसका सम्मान करें
यह उसका ताज़ा वचन है। आज .आपके लिए..।