यह किसकी गलती है?
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नीतिवचन 19:3 मूढ़ता के कारण मनुष्य का मार्ग टेढ़ा होता है, और वह मन ही मन यहोवा से चिढ़ने लगता है।
मैंने अपने जीवन में कुछ मूर्खतापूर्ण कार्य किये हैं। आपने भी किए होंगे? ठीक ? काश हम हम समय को मोड़ सकते। … लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते। और, संभवतः, हम में से कुछ आज भी उन कार्यों के परिणाम भुगत रहे हैं।
हम सभी अपनी गलतियों को स्वीकार करने से नफरत करते हैं। यह स्वीकार करते हुए कि हम गलत थे; यह स्वीकार करते हुए कि हमारे दृष्टिकोण और हमारे कार्यों ने हमें और दूसरों को बहुत पीड़ा पहुंचाई है। “मैं गलत था,” यह दूसरों के सामने स्वीकार करना तो दूर की बात है, खुद के सामने स्वीकारना भी बहुत कठिन और पीढ़ा दायक है।
किसी और को दोष देना बहुत आसान है और चूँकि हर चीज़ का नियंत्रण ईश्वर के पास है, तो उससे बेहतर दोष देने के लिए और कौन हो सकता है? परमेश्वर, आपने ऐसा क्यों होने दिया? आपने मुझे चेतावनी क्यों नहीं दी? आप मुझे इतनी बड़ी गलती करने की इजाजत कैसे दे सकते हैं?
वैसे यह सही भी लगता है,. इसीलिए लोग अपनी परेशानियों के लिए उसे दोषी ठहराते हैं (चाहे, इस तरह के प्रश्न पूछकर थोढ़ा सा ही सही)। तो आइए एक पल के लिए इस पूरे आरोप-प्रत्यारोप पर थोड़ी सी ईश्वरीय दृष्टि डालें।
नीतिवचन 19:3 मूढ़ता के कारण मनुष्य का मार्ग टेढ़ा होता है, और वह मन ही मन यहोवा से चिढ़ने लगता है।
या,फिर, यदि आप मूल हिब्रू भाषा के अधिक शाब्दिक अनुवाद के साथ जाना चाहें तो … जब किसी व्यक्ति की मूर्खता उसे बर्बादी की ओर ले जाती है, तो उसका हृदय प्रभु के विरुद्ध क्रोधित होता है।
देखिए, ईश्वर एक बहुत ही सुरक्षित प्रकार का ईश्वर है और हमारे क्रोधित होने से वह अपनी जगह से गिरने वाला नहीं है। और जब हम आख़िरकार अपने होश में आते हैं, तो वह वफ़ादार परमेश्वर है। वह हमें माफ़ कर देगा। लेकिन इससे पहले एक बात समझ लें। परमेश्वर के पास जाने से पहले हम अपने होश में आ जाएं।
हम जो मूर्खतापूर्ण काम करते हैं उनके परिणाम उसकी गलती नहीं हैं।
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज …आपके लिए…।