आपकी आत्मा की गहराई
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यूहन्ना 1:4,5 उसमें जीवन था और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था। ज्योति अन्धकार में चमकती है, और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया।
जब हमारे जीवन में सब कुछ गलत होने लगता हैं, मेरा मतलब है कि बुरी तरह से गलत होने लगता है, हमारी सबसे आम प्रतिक्रिया होती है – दूसरों को दोष देना। यह हर किसी की गलती है, शायद परमेश्वर की भी, लेकिन निश्चित रूप से मेरी नहीं!
शायद हम उस पर हंसते हैं, लेकिन केवल इसलिए कि हम जानते हैं कि यह सच है। केवल इसलिए कि हम बार-बार ऐसा करते हैं। यदि हम सही से अपनी परिस्थितियों को देखें, यदि हम उन कारणों की जांच करें जिन की वजह से जीवन में ये गलत हुआ है, तो अक्सर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि इसमे कुछ हमारा भी योगदान था। आंशिक रूप से हम भी दोषी थे।
लेकिन हम ऐसा नहीं करते। हम उत्तरदायित्व लेना नहीं चाहते। हम खुद की जिम्मेदारी लेने के बजाय बाकी दुनिया को दोष देना पसंद करेंगे। और जितना अधिक हम ऐसा करते हैं, उतना ही हम उस अंधेरे में जीते हैं, और हमारी आत्माएं विजयी जीवन जीने के बजाय, शिकार होने के लिए उतनी ही अधिक झुकती जाती हैं। फिर यीशु आते हैं :
यूहन्ना 1:4,5 उसमें जीवन था और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था। 5ज्योति अन्धकार में चमकती है, और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया।
जब हम आत्म-भ्रम के अँधेरे में जी रहे होते हैं, तो हमें उस स्थान पर प्रकाश डालने के लिए किसी की आवश्यकता होती है। जब हमारी दृष्टि पाप में घिरे जीवन से धुंधली हो जाती है, तो हमें जिस चीज की आवश्यकता होती है, वह स्वतंत्रता है जो चीजों को स्पष्ट रूप से देखने से आती है।
यही कारण है कि यीशु न केवल अँधेरे में प्रकाश चमकाने के लिए आए, बल्कि केवल एक, और एक उद्देश्य के साथ हमारी आत्मा के सबसे अँधेरे स्थानों में भी अपने प्रकाश को चमकाने के लिए आए। हमें जीवन देने के लिए आए। अपना जीवन, पूरी बहुतायत के साथ।
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज …आपके लिए..।