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परमेश्वर का प्रोत्साहन

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रोमियों 15:4 धर्मग्रन्‍थ में जो कुछ पहले लिखा गया था, वह हमारी शिक्षा के लिए लिखा गया था, ताकि हमें उस से धैर्य तथा सांत्‍वना मिलती रहे और इस प्रकार हम अपनी आशा बनाये रख सकें।

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परमेश्वर का प्रोत्साहन


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जब मुश्किल आती है तो हम में से कोई भी इसे पसंद नहीं करता। जी हाँ ! हम इसे बिल्कुल पसंद नहीं करते क्योंकि हम एक आसान जीवन जीना  चाहते हैं। इसलिए जब हम दुख तकलीफ  के करीब होते हैं, तो हमें प्रोत्साहन  की  आवश्यकता होती है।  प्रोत्साहन, जो सहनशक्ति विकसित करने के लिए आवश्यक है।

कल हमने धीरज के बारे में बात की थी और मैंने आपको अपने मित्र के बारे में बताया था जिन्हें  दौड़ने से बहुत नफरत है। किसी भी सेना में, सैनिकों को युद्ध दक्षता कि परीक्षा पास करनी होती है जिस में  उन्हें पूरे सैनिक तामझाम यानि राशन सामग्री, पानी की बोतलें और अस्त्र शस्त्र के साथ दौड़ लगानी पड़ती है।   मेरे मित्र को आज 40 साल बाद भी, उन दिनों के  बारे में सोचकर घबराहठ सी महसूस है।

कई बार हम परीक्षा आने पर आधे रास्ते से ही मुड़ जाना कहते हैं लेकिन एक चीज़ जो आगे बढ़ने  में हमारी सहायता करती है वह है – प्रोत्साहन। दोस्तों के दयालु शब्द कि मुश्किल का यह समय जल्दी ही बीत जाएगा।

प्रोत्साहन, समय के साथ साथ, धीरज विकसित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निबाहता है।

रोमियों 15:4 धर्मग्रन्‍थ में जो कुछ पहले लिखा गया था, वह हमारी शिक्षा के लिए लिखा गया था, ताकि हमें उस से धैर्य तथा सांत्‍वना मिलती रहे और इस प्रकार हम अपनी आशा बनाये रख सकें।

परमेश्वर का वचन शक्तिशाली है, लेकिन उस  कठिन समय में, जब हम दर्द की सीमा को पार करते हैं, तो यह मांग से भरपूर लगता है। मुख्य बात यह है कि जब हम दुख तकलीफ से गुजरते हैं, तो  हम धीरज विकसित करते हैं, हम मजबूत हो जाते हैं, हम दृढ़ हो जाते हैं, हमारा  विश्वास परमेश्वर में दृढ़ हो जाता  है।

और यह विश्वास हमें आशा की ओर ले जाता है, एक निश्चित आशा, एक ऐसी आशा जो कभी विफल नहीं होती, जो कभी निराश नहीं करती। इसलिए मैं यह समझ नहीं पाता कि  लोग यह क्यों सोचते हैं कि वे कठिनाई के समय को परमेश्वर के प्रोत्साहन के बिना, परमेश्वर के वचन के प्रोत्साहन के बिना तय कर  सकते हैं।

… ताकि हमें उस से धैर्य तथा सांत्‍वना मिलती रहे और इस प्रकार हम अपनी आशा बनाये रख सकें।

यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज …आपके लिए..।


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