परमेश्वर की मूर्खता और कमजोरी
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1 कुरिन्थियों 1: 22-25 परन्तु हम तो उस क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह का प्रचार करते हैं जो यहूदियों के निकट ठोकर का कारण, और अन्यजातियों के निकट मूर्खता है। 24 परन्तु जो बुलाए हुए हैं क्या यहूदी, क्या यूनानी, उन के निकट मसीह परमेश्वर की सामर्थ, और परमेश्वर का ज्ञान है। 25 क्योंकि परमेश्वर की मूर्खता मनुष्यों के ज्ञान से ज्ञानवान है; और परमेश्वर की निर्बलता मनुष्यों के बल से बहुत बलवान है॥
व्यक्तिगत रूप से, मैं चाहूँगा कि परमेश्वर मेरी अपेक्षाओं पर अधिक खरा उतरे; वह वही करे जैसे मैं उससे अपेक्षा करता हूँ। आप क्या सोचते हैं? लेकिन परमेश्वर बिल्कुल ऐसा नहीं करता। और बस सब कुछ ऐसे ही चलता रहता है।
तो…परमेश्वर ने स्वयं को हमारी दृष्टि से क्यों छिपा रखा है? क्यों नहीं वह स्वयं को सबके सामने प्रकट कर देता? ताकि हम सब अपने पापों को छोड़ कर आपस में मिल झुल कर रहें। बस सारी समस्या खत्म।
यह सोचना अनुचित नहीं है। आप और मैं शायद यही करना चाहेंगे। ईश्वर की सारी शक्ति और उसके सारे प्रेम के साथ, हम आगे आएंगे और दुनिया की इस गंदगी को हमेशा के लिए साफ कर देंगे।
तो आप उन लोगों को समझ सकते हैं जो यीशु पर विश्वास नहीं करते हैं जिन्हें परमेश्वर ने क्रूस पर मरने के लिए भेजा था। वे इस परमेश्वर के प्रति थोड़ा सा संदेह रखते हैं। मुझे एक चिन्ह दिखाओ, साबित करो कि यह सच है।
1 कुरिन्थियों 1:22-25 परन्तु हम तो उस क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह का प्रचार करते हैं जो यहूदियों के निकट ठोकर का कारण, और अन्यजातियों के निकट मूर्खता है।
24 परन्तु जो बुलाए हुए हैं क्या यहूदी, क्या यूनानी, उन के निकट मसीह परमेश्वर की सामर्थ, और परमेश्वर का ज्ञान है।
25 क्योंकि परमेश्वर की मूर्खता मनुष्यों के ज्ञान से ज्ञानवान है; और परमेश्वर की निर्बलता मनुष्यों के बल से बहुत बलवान है॥
हालांकि यह कुछ लोगों को मूर्खतापूर्ण लग सकता है, लेकिन परमेश्वर ने स्वयं को इस संसार के सभी लोगों के सामने प्रकट किया है। उन्होंने समस्याओं को सुलझाने का एक मार्ग प्रदान किया है। उन्होंने हमें अपनी शक्ति दी है ताकि भेदभाव को भूल कर प्रेमपूर्वक एक दूसरे के साथ रह सकें। लेकिन एक प्रेमपूर्ण तरीके से उसने हमें चुनाव करने का मौका भी दिया है। यीशु पर विश्वास करें या न करें।
वह मार्ग है; एक ही रास्ता।
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज …आपके लिए…।