परमेश्वर क्यों छिप जाता है?
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यशायह 55:8,9 क्योंकि यहोवा कहता है, मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है। क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है॥
मै आपसे पूछना चाहता हूँ। यदि आप ईश्वर हों, तो क्या आप अपने आप को सबसे छिपा कर रखना चाहेंगे, जिस तरह से परमेश्वर करते हैं, या आप स्पष्ट रूप से हर किसी पर ये ज़ाहिर कर देंगे कि आप वास्तव में सर्वशक्तिमान, शक्तिशाली परमेश्वर हैं?
कितनी अजीब बात है। यीशु एक पहाड़ की चोटी से नीचे आ रहा है। जहां कुछ समय पहेले शिष्यों ने येशु के रूपांतर के रूप में एक अद्भुत चमत्कार देखा था। और अब वह अपने शिष्यों से कहता है:
मत्ती 17: 9 जब वे पहाड़ से उतर रहे थे तब यीशु ने उन्हें यह आज्ञा दी; कि जब तक मनुष्य का पुत्र मरे हुओं में से न जी उठे तब तक जो कुछ तुम ने देखा है किसी से न कहना।
वो ऐसा क्यों करता है ? वह हर किसी को साफ साफ स्पष्ट रूप से, यह बता क्यों नहीं देता कि वह कौन है?
मैं कल्पना करता था कि, अगर मैंने बाइबल का पर्याप्त अध्ययन किया, तो एक दिन मुझे ये पता चल जाएगा की परमेश्वर कौन है। अगर मेरे तर्क वितर्क सही बैठे, तो मैं उसे समझ जाऊंगा ।
लेकिन जितना अधिक मैं उसे जानता गया, उतना ही मुझे इस सच का पता चलता गया कि वह अपने बारे में हमें क्या बताता है:
यशायाह 55: 8,9 क्योंकि यहोवा कहता है, मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है। क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है॥
ऐसा लगता है कि मेरा परमेश्वर छोटे-छोटे तर्क वितर्कों, सिद्धांतों से बहुत बड़ा है। बस, मैं इतना ही जानता हूं।
ये साफ बात है। परमेश्वर स्वयं को हमारे ऊपर पूरी तरह से प्रकट नहीं करता है। और यह रहस्य, एक सब कुछ न जान पाने के बादल के रूप में, जैसे की एक पुराने लेखक कहते हैं, परमेश्वर के साथ हमारे संबंधो के रहस्य और विस्मय का हिस्सा है।
क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है॥
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज … आपके लिए…।