बेचारा मैं
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नीतिवचन 14: 20,21 निर्धन का पड़ोसी भी उस से घृणा करता है, परन्तु धनी के बहुतेरे प्रेमी होते हैं। जो अपने पड़ोसी को तुच्छ जानता, वह पाप करता है, परन्तु जो दीन लोगों पर अनुग्रह करता, वह धन्य होता है।
इस समय आप अपने जीवन के किस मोढ़ पर हैं, इसके आधार पर, यह थोड़ा कठोर लग सकता है, लेकिन मैं इसे फिर भी कहूँगा क्योंकि यह सच है। हम जितने अधिक संपन्न होते जाते हैं, उतना ही हमारा ध्यान दूसरों की जरूरतों के बजाय स्वयं की जरूरतों पर केन्द्रित होता जाता है।
अक्सर हम अपने आप पर तरस महसूस करते हैं। हो सकता है कि आपके हालत कुछ अच्छे ना हों, आपकी तबीयत ठीक ना हो, आपकी मानसिक अवस्था स्वयं पर तरस खा रही हो। ऐसा हम सब के साथ होता है।
पहली बार भारत के एक गाँव में भयंकर गरीबी से मेरा सामना हुआ। ये लोग इतनी गरीबी में कैसे रहते हैं ये सोच कर मैं रो पढ़ा। उस क्षण तक, मुझे नहीं पता था कि “गरीबी ” का वास्तव में क्या मतलब है।
मुझे आपकी वित्तीय परिस्थितियों का पता नहीं है, मुझे नहीं पता कि आपके जीवन में क्या चल रहा है, ना ही मुझे ये पता है कि इस समय आपको क्या दुख हो सकता है। लेकिन मुझे पता है कि यीशु ने अपना अधिकांश समय गरीबों के बीच बिताया। वास्तविकता ये है कि परमेश्वर के वचन के अनुसार शुरु से आखिर तक, गरीबों के लिए परमेश्वर का दिल धड़कता है।
नीतिवचन 14: 20,21 निर्धन का पड़ोसी भी उस से घृणा करता है, परन्तु धनी के बहुतेरे प्रेमी होते हैं। जो अपने पड़ोसी को तुच्छ जानता, वह पाप करता है, परन्तु जो दीन लोगों पर अनुग्रह करता, वह धन्य होता है।
निश्चित रूप से, कभी-कभी हम खुद के लिए तरस महसूस करते हैं, लेकिन फिर भी हम में से हर एक, मुझे यकीन है, किसी भूखे को एक समय का खाना खिला सकता है। हम में से हर एक किसी ऐसे परिवार कि मदद का तरीका खोज सकता है, जिनके पास कोई आश्रय नहीं है।
हममें से प्रत्येक व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति दया और सांत्वना लाने का मार्ग खोज सकता है जो वास्तव में जरूरतमंद है; कोई ऐसा व्यक्ति जो अपने मन में दुखित है। ।
जो दीन लोगों पर अनुग्रह करता, वह धन्य होता है।
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज आपके लिए।