मुझे आज भोजन चाहिए
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ल्यूक 11:3 हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर
तो आखिरी बार कब आपको एक सख्त ज़रूरत थी। कोई बीमारी, या पैसे की कमी, या कोई टूटता हुआ रिश्ता ? और आवश्यकता की उस घढ़ि के में, क्या आप परमेश्वर के पास इस विश्वास से गए की वो आपकी आवशयकता को पूरा करेगा? क्या आप गए … या नहीं?
कुछ लोगों के लिए, बस हर दिन का भोजन जुटाना भी एक अविश्वसनीय संघर्ष होता है। आज भी, अरबों लोग गरीबी का जीवन जी रहे हैं।
मैं हाल ही में रवांडा में एक व्यक्ति के साथ बातचीत कर रहा था जो न केवल अपने परिवार का पेट भरने के लिए संघर्ष कर रहा था, बल्कि उसके रिश्तेदार भी गरीब थे। और बांग्लादेश में एक अन्य व्यक्ति ने मुझसे कहा कि, “ज्यादातर हम चावल खाते हैं लेकिन कभी-कभी, हमारे पास खाने के लिए कुछ भी नहीं होता तो हम भूखे रहते हैं।”
यीशु ने अपने शिष्यों को प्रार्थना करने के लिए जो बातें सिखाईं, उनमें से एक यह है:
लूका 11:3 हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर,
मैं अक्सर सोचता हूँ कि मछुआरे और किसान जो यीशु की बात सुन रहे थे, वे उसकी बातों को कैसे समझ सके होंगे। निश्चित रूप से उस प्रार्थना का अर्थ उन लोगों के कुछ अलग ही अर्थ रहता होगा जो गरीब होंगे। बजाय उन लोगों के, जिनके पास बहुत कुछ है।
संघर्ष करने वालों के लिए येशु कैसा परमेश्वर है जब वह उनके दिलों को छू कर कहता है और कहता है, “मुझ से मांगो , और मैं तुम्हें दूंगा”। आज रवांडा के उस व्यक्ति और बांग्लादेश के व्यक्ति के पास अपने परिवार को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन हैं। आप क्या सोचते हैं, उनके दिलों में, उनके लिए, हमारा परमेश्वर कौन है?
कभी-कभी हम सोचते हैं कि परमेश्वर के लिए हमारी आवश्यकताओं को पूरा करना असंभव होगा। और फिर हम उस सरल प्रार्थना को दोहराते हैं: हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर। और परमेश्वर देता है। वह हमेशा देता है। कभी वह हमारी मेहनत पर अपनी आशीष देता है। कई बार, जब हमारे सारे प्र्यतन भी काफी नहीं होते, तो वह स्वर्ग से एक चमत्कार भेज देता है।
वह जेसे भी करे , वह हमेशा, हमेशा हमारी आवश्यकताओं को पूरा करता है।
हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर।
यह परमेश्वर का ताजा वचन है। आज। … आपके लिए…