लेकिन मैं नहीं समझता …
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इब्रानियों 11:8,9 विश्वास ही से इब्राहीम जब बुलाया गया तो आज्ञा मानकर ऐसी जगह निकल गया जिसे मीरास में लेने वाला था, और यह न जानता था, कि मैं किधर जाता हूं; तौभी निकल गया। 9 विश्वास ही से उस ने प्रतिज्ञा किए हुए देश में जैसे पराए देश में परदेशी रह कर इसहाक और याकूब समेत जो उसके साथ उसी प्रतिज्ञा के वारिस थे, तम्बूओं में वास किया।
कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को जब कुछ करने के लिए कहते हैं तो उन्हे बताते हैं कि यह उन्हे क्यों करना है । कभी-कभी यह एक उपयुक्त उत्तर होता है। और कई बार शायद इतना नहीं।
सच तो यह है, आप युवा कंधों पर एक पुराना बोझ रख सकते हैं। इसलिए जब मेरे पिता हर शनिवार सुबह मुझसे अपना कमरा साफ करवाते थे, या जब मेरी मां जोर देती थी कि मैं हर दिन कम से कम आधा घंटा पड़ाई का अभ्यास करू (मुझे इन दोनों चीजें से सख्त नफरत थी) वे कभी भी यह नहीं बता सकते थे कि इतने वर्षों के बाद वे अनुशासन मेरे चरित्र में दिखाई देंगे।
उसी तरह, परमेश्वर कभी-कभी हमें ऐसे काम करने के लिए बुलाता है जो उस समय हमें पसंद नहीं होते; ऐसी चीज़ें जिनका कोई मतलब नहीं है; चीजें जो हम करना नहीं चाहते हैं। और यह उस जगह पर है, कि विश्वास सामने आता है
इब्रानियों 11:8,9 परमेश्वर ने इब्राहीम को दूसरी जगह जाने के लिये बुलाया, जिसे देने की उस ने प्रतिज्ञा की थी। इब्राहीम नहीं जानता था कि वह दूसरी जगह कहाँ है। लेकिन उसने परमेश्वर की बात मानी और यात्रा करना शुरू कर दी क्योंकि उसे विश्वास था। इब्राहीम उस देश में रहता था जिसे परमेश्वर ने उसे देने का वादा किया था। वह वहां एक परदेशी की तरह रहता था । उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसे विश्वास था। वह इसहाक और याकूब के साथ तम्बुओं में रहने लगा, जो उसके साथ उसी प्रतिज्ञा के वारिस थे,
परमेश्वर ने इब्राहीम और उसकी पत्नी सारा को उनके समृद्ध, आरामदायक अस्तित्व से अनिश्चित, असंभव और अत्यधिक असुविधाजनक पच्चीस वर्ष की यात्रा में बुलाया। उनके पास कोई सुराग नहीं था कि परमेश्वर उन्हें कहाँ ले जा रहा था, लेकिन वे विश्वास में निकल पड़े; उन्होंने परमेश्वर की आज्ञा मानी।
“विश्वास” परमेश्वर का अनुसरण करना और उसकी आज्ञा मानना है, भले ही इसका कोई अर्थ न हो।
यह उसका ताज़ा वचन है। आज आपके लिए.।