जिन लिगों को आप नापसंद करते हैं।
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मत्ती 5:43-48 “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर।’ 44परन्तु मैं तुमसे यह कहता हूँ कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिए प्रार्थना करो, 45जिस से तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भले और बुरे दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मी और अधर्मी दोनों पर मेंह बरसाता है। 46क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या फल होगा? क्या महसूल लेनेवाले भी ऐसा ही नहीं करते? 47“यदि तुम केवल अपने भाइयों ही को नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते? 48इसलिये चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।
आज आपके लिए एक प्रश्न है, वास्तव में दो प्रश्न। सबसे पहले, इस समय आपके जीवन में ऐसे कितने लोग हैं जिन्हें आप बहुत अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन नापसंद करते हैं? और दूसरी बात, जब आप उनसे मिलते हैं, तो आप उनके साथ कैसा व्यवहार करते हैं?
और हाँ, अगर यह प्रश्न आपको असुविधाजनक लगता है, तो आप अकेले नहीं है। मेरे जीवन में भी कई ऐसे लोग हैं जिन्हें मैं बेहद नापसंद करता हूं। एक व्यक्ति रौब जमाने वाला है – ऐसा नहीं है कि उसने मुझे किसी तरह से परेशान किया हो, लेकिन मैं देखता हूं कि यह आदमी अपने से नीचे काम करने वालों के साथ बहुत बुरा व्यवहार करता है। इस सूची में कुछ और लोग भी हैं। आप क्या सोचते हैं?
ऐसे लोगों के प्रति हमारी स्वाभाविक प्रतिक्रिया लगभग हमेशा उनसे घृणा करने की होती है। कभी-कभी, हम उन्हें नुकसान भी पहुंचाना चाहते हैं – उन्हें बताते हैं कि हम क्या सोचते हैं, उनके बारे में बुराई करते हैं, कुछ भी ऐसा जिसे से उन्हे नुकसान पहुंचे। यह हमारा स्वभाव है। लेकिन इस वास्तविकता को लेकर यीशु का कहना है:
मत्ती 5:43-48 “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर।’ 44परन्तु मैं तुमसे यह कहता हूँ कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिए प्रार्थना करो, 45जिस से तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भले और बुरे दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मी और अधर्मी दोनों पर मेंह बरसाता है। 46क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या फल होगा? क्या महसूल लेनेवाले भी ऐसा ही नहीं करते?
47“यदि तुम केवल अपने भाइयों ही को नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते? 48इसलिये चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।
याद रखिए : कि आप कभी किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं मिलेंगे जिसे परमेश्वर प्रेम नहीं करता।
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज …आपके लिए…।