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बिना आरोप लगाए बोलें

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याकूब 1:19 हे मेरे प्रिय भाइयो, यह बात तुम जान लो : हर एक मनुष्य सुनने क लिये तत्पर और बोलने में धीर और क्रोध में धीमा हो, 20क्योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्‍वर के धर्म का निर्वाह नहीं कर सकता।

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बिना आरोप लगाए बोलें


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कभी-कभी, आप किसी के साथ बातचीत कर रहे होते हैं, और ऊपर से जो भी वे आपसे जो कह रहे हैं, वह अच्छी सलाह होती है। लेकिन फिर भी, वह असुविधाजनक लगती है, क्योंकि ऐसा लगता है जैसे वे आप पर आरोप लगा रहे हैं, आपको दोष दे रहे हैं।

आपके साथ भी किसी ने इस तरह की बातचीत की होगी, है ना? यह ऐसा है जैसे दूसरे व्यक्ति के दिल की गहराईयों में एक गुस्सा है और जब वह बातचीत में फैल जाता है, तो हम स्वयं को दोषी महसूस करते हैं, तब हमें लगता है कि वे हम पर आरोप लगा रहे हैं … इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की उनकी सलाह कितनी अच्छी है या उनका नजरिया आपकी समस्या का समाधान हो सकता है, हम उनकी बात को स्वीकार नहीं करेंगे।

काशवेसमझपातेकिमेरीसमस्यासचमेंक्याहै।काशवेसमझतेकिमैंनेजोकियावहमैंनेक्योंकिया।काशवेमेरीबातसुननेकेलिएथोड़ीदेरतकचुपरहते!

अब, कहानी का दूसरा पहलू देखते हैं।  जब हम क्रोधित होते हैं, दूसरों के बारे में अनुमान लगाते हैं, दूसरे व्यक्ति पर दोषभरी उंगली उठाते हैं। तो उन्हे भी अच्छा नहीं लगता। यह परमेश्वर के उस प्रेम को व्यक्त नहीं करता है जो हम सोचते हैं कि हमारे अंदर है।

याकूब 1:19 हे मेरे प्रिय भाइयो, यह बात तुम जान लो : हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीर और क्रोध में धीमा हो, 20क्योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्‍वर के धर्म का निर्वाह नहीं कर सकता। 

याकूब यीशु का भाई था, तो आपको क्या लगता है कि उसने ज्ञान के उस छोटे से मोती को कहाँ से उठाया?

वह कठिन वार्तालाप जो हमें कभी कभी करना पड़ता है, उसकी की सफलता इस में है कि, हम अपने क्रोध को नियंत्रण में रखें।

आरोप-प्रत्यारोप की भाषा में क्रोध को फैलने देना कभी भी वह परिणाम नहीं देगा जो हम चाहते हैं। बोलने से ज्यादा सुनने के लिए तैयार रहना बेहतर है। अपनी बात सामने रखने के लिए गैर-निर्णयात्मक भाषा खोजना बेहतर है।

अपनेक्रोधपरनियंत्रणरखें।

यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज …आपके लिए…।


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