बोलना तथा सुनना
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याकूब 1:19 हे मेरे प्रिय भाइयो, यह बात तुम जानते हो: इसलिये हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा हो।
मैं एक दिन कनाडा में मेरे एक प्रिय मित्र के साथ वीडियो कांफ्रेंस के द्वारा बातचीत कर रहा था। उन्होंने कहा कि विरोधी विचारों के लोगों के बीच नागरिक संवाद आजकल लगभग खत्म हो चुका है
और मुझे उससे सहमत होना होगा। इन दिनों यह सब एक व्यक्ति के दूसरे को हराने के बारे में लगता है, मेरे बोलने का मतलब आप पर विजय प्राप्त करना है । सार्वजनिक वादविवाद न केवल बदसूरत हो गए है – बल्कि इसकी क्रूरता का मतलब है कि या तो हम अपनी खुद की बयानबाजी करना चाहते हैं (क्योंकि आखिरकार, एक मसीही के रूप में मुझे पता है कि मेरे पास सच्चाई है, मुझे पता है कि मैं सही हूँ !! ) या फिर बिल्कुल चुप होकर अपने आप मे बंद हो जाते हैं ।
लेकिन इनमे से एक भी इसका उत्तर नहीं है, कम से कम कोई ऐसा व्यक्ति जो यीशु में विश्वास करने का दावा करता है। जो उसके नक्शेकदम पर चलना चाहता है और एक खोई और दुखी दुनिया के साथ येशु के प्यार को बांटना चाहता है।
यहाँ पवित्रशास्त्र है जिसका मैं अक्सर उद्धारण देता हूँ, जो मेरा मार्गदर्शन करता है कि उन लोगों के साथ कैसे बातचीत करें जो मुझसे असहमत हैं:
याकूब 1:19 हे मेरे प्रिय भाइयो, यह बात तुम जानते हो: इसलिये हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा हो। क्योंकि तेरा क्रोध परमेश्वर की धार्मिकता को उत्पन्न नहीं करता।
मुझे यह पसंद है। सुनने में तेज हो, लेकिन बोलने में धीमा और क्रोध करने में धीमा। शायद उस मार्ग को समझने का एक और तरीका यही है, जिसे किसी अज्ञात लेखक ने लिखा है:
इस तरह सुनें कि दूसरे आपसे बात करना पसंद करें। इस तरह से बोलें कि दूसरे आपकी बात सुनना पसंद करें।
दूसरे शब्दों में, विनम्र समझ, और प्रेमपूर्ण, नागरिक संवाद।
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज .आपके लिए…