यह फलने फूलने का समय है।
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यूहन्ना 8:31,32 जिन यहूदियों ने उन में विश्वास किया, उन से येशु ने कहा, “यदि तुम मेरे वचन पर दृढ़ रहोगे, तो सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होगे। 32तुम सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें स्वतन्त्र करेगा।”
अगर आप अपने जीवन को आज, और अभी देखें, तो क्या आप कहेंगे कि आप जीवन में फल-फूल रहे हैं या नहीं? क्या “फलना -फूलना” एक विशेषण है जिसका उपयोग आप सुरक्षित रूप से अपने जीवन का वर्णन करने के लिए कर सकते हैं?
एक पौधा अच्छी मिट्टी में, सही मात्रा में धूप, और पनि मिलने पर, फलता-फूलता है, है ना? लेकिन आप उसी पौधे को बगीचे के दूसरे हिस्से में रख दें, शायद जहां बहुत अधिक छाया हो, या पर्याप्त पानी ना हो, या मिट्टी खराब हो। ऐसी परिस्थिति में पौधा जीवित तो रह सकता है, लेकिन वह नए पत्तों के साथ कभी फलेगा फूलेगा नहीं।
और एक पौधे के फलने या ना फलने की यह तस्वीर हमारे जीवन का जायजा लेने का एक अच्छा मापदंड है। हम कहाँ पर हैं, हमारी जीवन यात्रा कैसी चल रही है, हम वह जीवन जी रहे हैं या नहीं जो हमें देने के लिए यीशु ने अपने प्राण दिए और फिर से जी उठा।
मैं फिर से अपना प्रश्न दोहराता हूँ। यह एक कठिन प्रश्न है, लेकिन इसका उत्तर ईमानदारी से दें। क्या आप अपने जीवन में फल-फूल रहे हैं या नहीं?
यूहन्ना 8:31,32 जिन यहूदियों ने उन में विश्वास किया, उन से येशु ने कहा, “यदि तुम मेरे वचन पर दृढ़ रहोगे, तो सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होगे। 32तुम सत्य को जानोगे और सत्य तुम्हें स्वतन्त्र करेगा।”
जो लोग यीशु में विश्वास करते हैं, लेकिन वास्तव में फलते-फूलते नहीं हैं, जो वास्तव में वह भरपूर जीवन नहीं जी रहे हैं जो वह उन्हें देने के लिए आया था, उसका एक सबसे बड़ा कारण यह है कि वे उसकी बात नहीं सुनते हैं।
वे वह जीवन जी रहे हैं जो दुनिया कहती है कि हमें जीना चाहिए। लेकिन जब आप यीशु की शिक्षा को अपने दिलों में बैठा लेते हैं, उन्हें अपने जीवन में उतार लेते हैं, उसकी आज्ञा का पालन करने लगते हैं, तब वह आपको स्वतंत्र कर देता है फलने फूलने के लिए । … वह बनने के लिए जो उसने आपको बनाया है।
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज …आपके लिए…।