हर परिस्थिति के बावजूद।
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मत्ती 17:21-23 जब वे गलील में थे, तो यीशु ने उन से कहा; मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा।और वे उसे मार डालेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा। इस पर वे बहुत उदास हुए॥
मैंने वर्षों से इस चीज पर ध्यान दिया है, कि जब परमेश्वर हमें दुख के स्थान पर ले जाता है, तो वास्तव में उसका कुछ मतलब नहीं निकलता। । दर्द हमारे फैसलों को धुंधला कर देता है, और फिर हम सोचते हैं की इसमें से क्या भलाई निकाल सकती है?
परमेश्वर के बारे में जो बातें मेरी समझ से बाहर हैं उनमें से एक यह है कि वह किस तरह दुख तकलीफ को हमारी भलाई के लिए इस्तेमाल करता है। हमारी सोच के अनुसार आशीर्वाद अच्छा है, और दुख बुरा। हम इसी तरह सोचते हैं। । लेकिन परमेश्वर नहीं। उनके लिए, दुख उनकी योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इसलिए … यीशु अपने शिष्यों को आने वाले समय के लिए तैयार करना शुरू कर देते हैं।
मत्ती 17: 22,23 जब वे गलील में थे, तो यीशु ने उन से कहा; मनुष्य का पुत्र मनुष्यों के हाथ में पकड़वाया जाएगा।और वे उसे मार डालेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा। इस पर वे बहुत उदास हुए॥
ज़रा सोचिए अगर आप या मैं चेलों की उस बैठक में होते , तो हम उस भविष्यवाणी का क्या मतलब निकलते ?
क्या यह इंसान पूरी तरह से पागल है? यह चमत्कार-काम करने वाला, तूफ़ान को डांट कर स्थिर करने वाला, दुष्ट आत्माओं को निकालने वाला यीशु , जो ऐसी सामर्थ के साथ उपदेश देता है? मारा जाएगा? और फिर मृत्यु के बाद फिर से जीवित हो जाएगा ?
लेकिन परमेश्वर हमेशा हमारी सबसे बड़ी जरूरत को जानते थे। वह मृत्यु और विनाश के बारे में सब जानते थे जिसके कारण अनगिनत जीवन बर्बाद हो गए क्योंकि हमने परमेश्वर को अस्वीकार कर दिया था ।
और इसलिए, संसार के प्रति अपना महान प्रेम दिखने के लिए उसने अपने एकमात्र पुत्र, यीशु को इस संसार मे भेज दिया। ताकि वह मनुश्यों के हाथों धोखा खाये। उसका मज़ाक बनाया जाए। उसे घायल किया जाए। और मेरे और आपके पापों का भुगतान करने के लिए क्रूरता पूर्वक उसे क्रूस पर चढ़ा दिया जाए। और जब वह मर्तकों मे से जीवित हो तो हम उसके प्यार में एक नया जीवन पा सकें।
उसके शिष्यों को कुछ समझ नहीं आ रहा था। लेकिन इस सब के बावजूद, परमेश्वर ने फिर भी अपने बेटे येशु को हमारे वास्ते पीड़ित होने के लिए भेजा।
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज … आपके लिए…।