काफी नहीं है
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मत्ती 14:15,16 जब सांझ हुई, तो उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा; यह तो सुनसान जगह है और देर हो रही है, लोगों को विदा किया जाए कि वे बस्तियों में जाकर अपने लिये भोजन मोल लें। यीशु ने उन से कहा उन का जाना आवश्यक नहीं! तुम ही इन्हें खाने को दो।
उन सभी चीजों में से जो आप अपनी मेहनत की कमाई से खर्च करते हैं, कितनी चीजें आवश्यक हैं और कितनी विलासिता की चीजें हैं? और, अगर मैं आपसे पूछूं . तो क्या आप इनमे अंतर बता सकते हैं?
आप जानते हैं कि यह कभी भी मुझे अचंभित नहीं करता है कि हमारे पास जितना अधिक है, उतना ही ऐसा लगता है कि हमारी “चाहत ” और बड़ने लगती है और हमारे दिमाग में वह “जरूरतों” का रूप मेंले लेती है।
हम सभी ने इसे देखा है। हमारी अर्थव्यवस्था जितनी अधिक विकसित होती है, उतनी ही हम में से प्रत्येक कि इच्छाएं बड़ती हैं और उतना ही अमीर और गरीब के बीच की खाई भी बढ़ती जाती है। और वैसे जो लोग आर्थिक रूप से अच्छी तरह से हैं, वे खुद को अमीर होने के बारे में नहीं सोचते इसके बजाय कई लोगों को अभी भी यह लगता है कि उनके पास पर्याप्त नहीं हैं … क्योंकि “चाहत” “जरूरत” बन गई है
अब कल्पना कीजिए कि एक क्षेत्र में पाँच हज़ार लोगों की भीड़ है। यीशु दिन भर प्रचार करता रहा है . चलिए बाइबल में देखते हैं ..
मत्ती 14:15,16 जब सांझ हुई, तो उसके चेलों ने उसके पास आकर कहा; यह तो सुनसान जगह है और देर हो रही है, लोगों को विदा किया जाए कि वे बस्तियों में जाकर अपने लिये भोजन मोल लें। यीशु ने उन से कहा उन का जाना आवश्यक नहीं! तुम ही इन्हें खाने को दो।
सच में?! लेकिन कहाँ से ? सब को खिलाने के लिए भोजन नहीं था और फिर भी यीशु ने दो मछलियाँ और पाँच रोटियाँ ली , उन पर प्रार्थना की और उनसे भीड़ को खाना खिलाया। सभी पाँच हज़ार लोगों ने भरपेट खाया, और बारह टोकरियाँ बच भी गई ।
अद्भुत चमत्कार परमेश्वर का । जबकि हम अपनी इच्छा से प्रेरित हो सकते हैं, यीशु हमारी आवश्यकताओं से प्रेरित है। और उसके पास हमारे लिए हमेशा पर्याप्त है।
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज आपके लिए।