सेल्फी-संस्कृति
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1 कुरिन्थियों 10:24 कोई अपनी ही भलाई को न ढूंढे, वरन औरों की।
जब मैं बड़ा हो रहा था उस समय यदि आप इस सर्वव्यापी शब्द “सेल्फी” का प्रयोग करते, तो लोग आपको घूर कर देखते कि आप किस बारे में बात कर रहे हैं ।
फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैप चैट और टिक टोक वगैरा … अरबों – “सेल्फी” से भरे हुए हैं – हाँ, सचमुच अरबों । अगर मेरी दादी आज भी जीवित होतीं, तो वे मन ही मन सोचती कि “वे ऐसा क्यों कर रहे हैं?” अब, यह एक बहुत अच्छा सवाल है। आपको क्या लगता है कि लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं?
बेशक मोबाइल तकनीक ने यह सब संभव कर दिया है, लेकिन यह तकनीक की गलती नहीं है। तकनीक ने हमें सदियों पुरानी मानसिकता पर एक नया रूप डालने में सक्षम बनाया है कि “मैं ब्रह्मांड के केंद्र में हूं”। सक्षम और प्रबलित भी । मैं अपने हाथ की हथेली में टिकी हुई तकनीकी क्षमता पर अचंभित हूं, लेकिन यह सब मानवता की भलाई के लिए नहीं है … आपकी और मेरी भलाई के लिए भी नहीं ।
जितना अधिक यह चलता है, उतना ही यह हमारी आत्म-केंद्रितता को पुष्ट करता है। देखिए, क्या अपनी एक तस्वीर लेना और उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करना अपने आप में बुरा है? ज़रूरी नहीं। जो बुरी बात है वह आत्म-केंद्रितता की संस्कृति है जिसे वह बड़े पैमाने पर, संसार भर मे प्रचारित करती है।
मसिहत हमें सांस्कृतिक होने की सलाह देती है।
1 कुरिन्थियों 10:24 कोई अपनी ही भलाई को न ढूंढे, वरन औरों की।
क्या यह व्यापक सेल्फी-संस्कृति में बिल्कुल फिट नहीं बैठती ?
क्या मैं आपसे एक बात पूछूं? सेल्फी-संस्कृति ने किस हद तक यीशु में आपके विश्वास, उन्हें अपने जीवन का प्रभु बनाने की आपकी इच्छा, उनके नाम पर दूसरों को प्यार करने और उनकी सेवा करने के आपके जुनून को कम कर दिया है?
वही करने की कोशिश करें जो दूसरों के लिए अच्छा हो, न कि सिर्फ अपने लिए
यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज आपके लिए…