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एक खुशहाल योद्धा

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1 कुरिन्थियों 13:1-3 यदि मैं मनुष्यों और स्वर्गदूतों की बोलियाँ बोलूँ और प्रेम न रखूँ, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झाँझ हूँ। 2और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूँ, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूँ, और मुझे यहाँ तक पूरा विश्‍वास हो कि मैं पहाड़ों को हटा दूँ, परन्तु प्रेम न रखूँ, तो मैं कुछ भी नहीं। 3यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूँ, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूँ, और प्रेम न रखूँ, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।

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एक खुशहाल योद्धा


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तो आज आपसे एक और सवाल। जब आप सच्चाई के बचाव में, या शायद अपने विश्वास की बात करते हैं, तो आप क्या कहते हैं? आपके चेहरे के हाव-भाव और आपकी आवाज़ के लहज़े सुनने वालों से क्या कहते हैं?

यह कोई आसान बात नहीं है। जब आप कुछ गलत देखते हैं, जब आप देखते हैं कि झूठ बोला जा रहा है, ऐसा झूठ जो बहुत नुकसान पहुँचा रहा है, क्या उस समय आपको बोलना चाहिए, या आपको चुप रहना चाहिए?

मेरे विचार से यह कई बातों पर निर्भर करता है। वह संदर्भ या किस हद तक आप अपनी बात सामने रखने के लिए स्वयं को योग्य या सक्षम महसूस करते हैं। बहुत सी बातें। लेकिन मान लीजिए कि आप किसी चाबुक की तरह तेज हैं। आप बिना डरे अपनी बात सामने रखने के लिए तैयार हैं। लेकिन आपको कैसे बोलना चाहिए?

1 कुरिन्थियों 13:1-3 यदि मैं मनुष्यों और स्वर्गदूतों की बोलियाँ बोलूँ और प्रेम न रखूँ, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झाँझ हूँ। 2और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूँ, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूँ, और मुझे यहाँ तक पूरा विश्‍वास हो कि मैं पहाड़ों को हटा दूँ, परन्तु प्रेम न रखूँ, तो मैं कुछ भी नहीं। 3यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूँ, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूँ, और प्रेम न रखूँ, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं।

मैं हाल ही में एक जाने-माने पत्रकार को सुन रहा था, जो एक मसीही भी है। उन्होंने कहा कि हमें हर हाल में सच के लिए बोलना चाहिए और उसकी रक्षा करनी चाहिए। और हाँ, हमें भी उतना ही चतुर होना चाहिए जितना कि हमारा विरोध करने वाले लोग… लेकिन उससे भी ज्यादा खुशमिजाज। हमें, मसीह के नाम में, खुश मिजाज  योद्धाओं के रूप में जाना जाना चाहिए।

सच बोलो मगर प्यार से।

यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज …आपके लिए…।